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  • Writer's pictureMAHARISHI AAZAAD

देव भाषा संस्कृत मे महिलाओं को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, आज़ाद


संस्कृत पुनरूत्थान के महानायक आज़ाद ने कहा कि महिला संसार की जननी हैं |

स्त्रियों के प्रति शास्त्रों की आदर एवं न्याय दृष्टि अतुलनीय है , उनके मान सम्मान को हर श्लोक में बचाये और बनाये रखा है जिससे साबित होता है की नारी ईश्वर की सर्वश्रेश्ठ रचना है |


१-जिस कुल में स्त्री का सम्मान होता है,वहाँ देवता रमण करते हैं!

और जहाँ अपमान होता है,वहाँ सभी शुभकार्य व्यर्थ हो जाते हैं,देवता पितर उस घर का त्यागकर देते हैं!!(मनुस्मृति एवं महाभारत)

 देवता:पितरश्चैव_उत्सवे_पर्वणीषु_वा!

निराशा:प्रतिगच्छन्ति_कश्मलो_पहताद्_गृहात्


२--स्त्रीपर पति अथवा पुत्र के द्वारा लिए गये ऋण को चुकाने का दायित्व नहीं है---

न_स्त्री_पतिकृतं_दद्यादृणं_पुत्रकृतं_तथा!

 (मनुस्मृति,नारद पुराण)


३--मनुष्यको प्रयत्नपूर्वक स्त्रीकी रक्षा करनी चाहिए!

स्#पितुर्दशगुणा_+माता_गर्भधारण_पोषणात्,आत्मा,धर्म --इन सबकी रक्षा होती है!+

स्वां_प्रसूतिं_चरित्रं_च_कुलमात्मनमेव_च!

स्वं_च_धर्म_प्रयत्नेन_जायां_रक्षन्हि_रक्षति!!

(मनुस्मृति)




४--परस्त्री का तो कहना ही क्या है,अपने बहन,बेटी,माता के साथ भी एकान्त में नहीं रहना चाहिये!

इन्द्रियाँ विद्वान पुरुषों को भी वश में कर लेतीं हैं!!

स्वस्रा_दुहित्रा_मात्रा_वा_नैकान्तासनमाचरेत्!

दुर्जयो_हीन्द्रियग्रामो_मुह्यते_पण्डितोऽपि_सन्!!

     (स्कन्द पुराण)


५--परस्त्री को मातृवत,परधन को मिट्टी के समान समझना चाहिये!

मातृवत्_परदारेषु_परद्रव्येषु_लोष्टवत्!

    (नीति शास्त्र)


६--पिता से दशगुना माता श्रेष्ठ है--

  पितुर्दशगुणा_माता_गर्भधारण_पोषणात्!



७--यदि किसीने स्त्रीसे बलात्कारपूर्वक भोग कर लिया हो,अथवा वह चोर के हाँथ में पड़ गयी हो तो भी अपनी स्त्री का परित्याग नहीं करना चाहिये!

न_त्याज्या_दूषिता_नारी_नास्यास्त्यागो_विधीयते

         (वसिष्ठ स्मृति)


८--जो पुरुष अपनी निर्दोष तथा सुशीला पत्नी को युवावस्था में छोड़ देता है, वह सात जन्मों तक स्त्री होता है,और बार बार वैधव्य को प्राप्त होता है

अदुष्टां_विनतां_भार्यां_यौवने_य: परित्यजेत्

सप्तजन्म_भवेत्_स्त्रीत्वं_वैधव्यं_च_पुनःपुनः

(वसिष्ठ स्मृति)


९--पुत्र कुपुत्र हो सकता है,पर माता कुमाता नहीं!

कुपुत्रो_जायेत_क्वचिदपि_कुमाता_न_भवति!

   ( पूज्यपाद श्री शङ्कराचार्य जी)

नमश्चण्डिकायै!!






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