Ramdandi Sanskrit Mahanayak Maharishi Aazaad Awarded Sanskrit Kalanidhi By Panini Shodh Sansthan
संस्कृत कलानिधि अलंकरण से विभूषित हुए संस्कृत महानायक महर्षि आज़ाद
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय , व्याकरण विभाग, काशी एवं पाणिनीय शोध संस्थान, बिलासपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित भव्य ऑनलाइन कार्यक्रम में संस्कृत महानायक महर्षि आज़ाद को उनकी कालजयी संस्कृत फ़िल्म अहम ब्रह्मास्मि के माध्यम से देवभाषा संस्कृत के संवर्धन के लिए संस्कृत कलानिधि के अलंकरण से सम्मानित किया गया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्कृत व भारतीयता का प्रचार, प्रसार कर रही संस्कृत भूषण कामिनी दूबे को संस्कृत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया |
इस अवसर पर संस्कृत के उत्थान में संस्कृत चलचित्र की भूमिका और देवभाषा संस्कृत के संवर्धन में अहम ब्रह्मास्मि का अवदान विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस महान अवसर पर सभाध्यक्षा राष्ट्रपति सम्मानित महामहोपाध्याय प्रो पुष्पा दीक्षित, मुख्य अतिथि पद्मश्री महामहोपाध्याय भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ‘वागीश शास्त्री’ , सारस्वत अतिथि पद्मश्री प्रो अभिराज राजेंद्र मिश्र -पूर्व कुलपति, सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, विशिष्ट अतिथि प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी -पूर्व कुलपति, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली एवं कार्यक्रम के प्रस्तोता प्रो ब्रजभूषण ओझा , अध्यक्ष व्याकरण विभाग, सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ने अपने अमूल्य विचार रखते हुए महर्षि आज़ाद के व्यक्तित्व और देवभाषा संस्कृत को अंतरराष्ट्रीय विश्व जगत में स्थापित करने के महान कृतित्व की भूरि भूरि प्रशंसा की।
संस्कृत जगत की महानतम महिला, कई दशक से संस्कृत के उत्थान के लिए समर्पित, सभाध्यक्षा राष्ट्रपति सम्मानित एवं पाणिनि शोध संस्थान की प्रमुख महामहोपाध्याय प्रो. पुष्पा दीक्षित ने कहा कि हमारी संस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए ही महर्षि आज़ाद का अवतार हुआ है। महर्षि आज़ाद को देवभाषा संस्कृत को आधुनिक जगत से जोड़ने के महान कार्य के लिए उन्होंने धन्यवाद दिया और सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि अब हमारी विरासत को बचाए, बनाए रखने के साथ ही महर्षि आज़ाद इसे उच्चतम शिखर पर ले जा रहें है।
पद्मश्री प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्र ने अपने विचार व्यक्त करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि संस्कृत महानायक महर्षि आज़ाद ने संस्कृत के उत्थान के महानतम अभियान के साथ ही उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के उद्देश्य से संस्कृत भाषा में एक अभूतपुर्व, अद्वितीय एवं अद्भुत चलचित्र "अहं ब्रह्मास्मि" का निर्माण करके समस्त संस्कृतप्रेमियों को एवं स्वयं संस्कृत भाषा को उपकृत किया। जिन्होनें संस्कृत के अनेकों उच्चतम सम्मानों को प्राप्त कर सनातन जगत में अपना नाम अमिट अक्षरों में लिख दिया, जो स्वयं में एक अद्भुत व्यक्तित्व के मालिक, वक्ता, निर्देशक, लेखक एवं महानायक हैं, ऐसे यशस्वी, तेजस्वी एवं प्रतापी व्यक्तित्व के धनी श्रीमान् आजाद बाबू को हम सब संस्कृत जगत के समस्त सेवक हृदय से शुभकामना एवं धन्यवाद देते हुए आनन्द की अनुभूति कर रहे हैं।
संस्कृत के उन्नयन के लिए सैकड़ों पुस्तकें लिख चुके संस्कृत पुरोधा पद्मश्री महमहोपाध्याय वागीश शास्त्री ने कहा महर्षि आज़ाद हमारी संस्कृत धरोहर को विश्व स्तर पर पहुँचाने वाले आधुनिक संवाहक है।
पूर्व कुलपति राधावल्लभ त्रिपाठी कहा कि महर्षि आज़ाद आज की आवश्यकता है। पंचम वेद के माध्यम से महर्षि आज़ाद संस्कृत को विश्व स्तर पर पुनर्स्थापित करने का महान आंदोलन कर ऋषि परंपरा की वापसी का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।
संस्कृत कलानिधि से सम्मानित रामदंडी, संस्कृत महानायक, महर्षि आज़ाद ने भी अपने उद्बोधन में संस्कृत और संस्कृति, सनातन भारत और प्रखर राष्ट्रवाद जैसे विषय उठाकर जड़ों की ओर लौटने का आह्वान किया।विद्वत समाज अपने संस्कृत महानायक को देख सुनकर चमत्कृत अनुभव कर रहे थे। आज़ाद ने अपने गुरुगंभीर स्वर में कहा कि संस्कृत का उत्थान ही राष्ट्र का निर्माण है।सैन्य विद्यालय छात्र एवं संवेदनशील कलाकार महर्षि आज़ाद ने कहा कि मेरी कृति अहम ब्रह्मास्मि जड़ों की तरफ लौटने का संकल्प है।
हजार साल की गुलामी की वजह से हम अपनी जड़ों से कट गए। संस्कृत के साथ ही भारतीय सनातन संस्कृति का गौरव स्थापित होगा।
अहम ब्रह्मास्मि के जरिए संस्कृत और संस्कृति को विश्व पटल पर स्थापित करने का मेरा मकसद रहा है।
महर्षि आज़ाद ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि सैन्य विद्यालय से शिक्षित और दीक्षित होने के बाद जब मैंने पूरे देश की परिक्रमा की तो मुझे देश की सनातन संस्कृति को जानने का समझने का मौका मिला फिर अपने अनुभव को मैंने सिनेमाई रचनात्मकता के साथ प्रस्तुत किया।हमारे वेद उपनिषद यह सब वैज्ञानिकता का चरम रहस्य है । जैसे जैसे हम अपने मर्म को समझेंगे हम वेदों के अंदर का विज्ञान भी समझ पाएंगे।
महर्षि आज़ाद ने सनातन धर्म के उत्थान के प्रति संस्कृत प्रेमियों से कहा कि संस्कृत को जन जन तक पहुंचाने के लिए हमने जिस ब्रह्म वाक्य ‘अहं ब्रह्मस्मि’ का उद्घोष किया वो आज पूरे भारत में क्रांति के रूप में एक आंदोलन बन चुका है।
संस्कृत भूषण कामिनी दुबे भारतीय संस्कृति को विश्व-संस्कृति बनाने के अभियान में एक वीरांगना भारतीय नारी की तरह डटी हुई है। ऐसे में संस्कृत और संस्कृति की उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें पाणिनि शोध संस्थान द्वारा संस्कृत रत्न की महान उपाधि से सम्मानित किया जाना हर्ष और गौरव का विषय है। आशा है कि संस्कृत रत्न, संस्कृत भूषण कामिनी दुबे की लगन-मेहनत-प्रतिभा-निष्ठा के कारण देवभाषा संस्कृत के ज़रिए भारतीय संस्कृति का पूर्णरूपेण संवर्धन एवं संरक्षण होगा और साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित होगी।
जयतु संस्कृतम।